Kabir

लाली मेरे लाल की

कबीर का दोहा

लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल |
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ||

मुझे हर जगह ईश्वरीय ज्योति दिखती है- अंदर, बाहर, हर जगह. लगातार ऐसी दैवी ज्योति देखते देखते, मैं भी ईश्वरीय हो गई हूँ |

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2 thoughts on “लाली मेरे लाल की

  1. Vinod Kumar says:

    ऐसा कोई दोहा है कबीर जी का, जिसका विरोधाभाषी रूप में उनकी पुत्री कमाली ने जवाब दिया हो। वह दोहा जरूर पोस्ट करें।
    कृपया जरूर बताएं बहुत महत्वपूर्ण है

  2. Santosh Khanna says:

    मेरा अंग्रेजी अनुवाद देखिए:
    Grace Grace everywhere of my dear God
    When I tried to perceive through
    Me became That all.

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